Friday, May 20, 2011

संक्रमित थियेटर में समाज का आपरेसन

आज स्थानीय समाचार पत्र में पढ़ा कि पुष्करण समाज मुंबई और फलोदी में मीटिंग हुए और समाज में विवाह में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध माहौल तैयार करना और इन्हें जड़ से मिटाने का संकल्प लिया गया है। कई पुष्करना वक्तो ने कई समाज सुधार के लिए विचार रखे , कई के तो फोटो भी समाचार पत्र में देखे । प्रयास सराहनीय है।

मुझे स्थानीय समाचार पत्र की खबर एक सप्ताह पूर्व मेरी माता जी ने इस खबर को विस्तार से मुझे बताया था, मेरी माताजी मात्र ५वी क्लास पास है लेकिन वे अखबार रोज पढती है और गौर भी करती है, मेरी माताजी ने ये खबर बताने के बाद ये सवाल किया कि सब कुच्छ ठीक है लेकिन जो ये मीटिंग कर रहे उन लोगो का बेक ग्राउंड क्या है, उनके बेटो की शादिया किस प्रकार संपन हुए है

१। क्या समाज को मालूम है!
२। मिलानिया कितने की थी!
३। दहेज़ और फिक्स डिपोजिट कितना लिया था!
४। बारात में कितना बारूद फूंका था!
५। लड़की वालो के यंहा कितनी बार भोजन की प्रीति की थी!
६। कितना सोना दहेज़ में था !
७। कितनी बार लिफाफे(मिलानिया) लिए


जब नेता और अफसर आपनी सम्पति की घोषणा कर रहे तो क्या हमारे समाज सुधारक इतनी घोषणा करने का साहस रखते है कि वे जिस मंच से समाज सुधार की बाते कर रहे वे इन कुरीतियों से किनारा कर चुके है क्या! वे कतई नहीं कहेगे कि और बात से किनारा करेंगे। एक पुष्करना सज्जन ने यह तक कह दिया की उनका बेटा गोल्ड है और गोल्ड के भाव ही किसी घर का जंवाई बनेगा। अच्छे पढ़े लिखे पुष्करना युवाओ की कीमत बेटे वाले ही नहीं बेटी वाले भी आंक रहे है , जब ये समाज सुधारक मंच से नीचे उतरते है तो शादी के जोड़ बाकी में लग जाते है। अगर इन समाज सुधारको में साहस है तो वे आगे आये और बताये किस गरीब की बेटी को बहु बनाया है, कितनी सादगी से अपने बेटो का विवाह किया है, अगर दहेज़ और मिलानिया नहीं ली है तो समाज के सामने अपना उदहारण रखे ताकि हम उन्हें सम्मान भरी नजर से देखकर उनका अनुसरण कर सके।

Sunday, May 8, 2011

मुझे नहीं मालूम था कि आज मदर्स डे है, जब मालूम पड़ा तो मुझे मेरी माँ क़ी माताजी यानि मेरी नानी मुझे याद आ गयी। आज भी याद आता है जब में ननिहाल जाता था तो मुझे १ रूपया देती थी और मुझे ऐसा लगता था कि दुनिया सारी ख़ुशी उस एक रुपये में है। जीरे का तड़का लगा कर आलू की सब्जी बनाती थी, क्या स्वाद होता था और कोकम डाल कर दाल बनती थी । उस स्वाद और स्नेह को आज भी याद करता हूँ क्योकि मेरी नानी दुःख में रहकर भी मुझ पर स्नेह लुटाती थी। आज उस स्नेहमयी आत्मा को प्रणाम करता हूँ।