Sunday, March 17, 2013

दिल के अरमा

 दिल के अरमा
          उसकी गली मे सड गये
हम वफ़ा करते रहे
           वो किसी के  साथ  थी
जिंदगी एक प्यास बन कर रह गयी
           पेपसी कोला वो पीती गई
हम बिल चुकाते रह गये
शायद उनका आखिरी हो  यॅ सितम
वो घर बसा के चली गई
हम जिंदगी भर कुंवारे रह गये
 खुद को भी हम ने मिटा डाला 
पर क़ब्र पर   मेरी  आशियाना बनाने आ गॅये