बर्फ के शहर में
पत्थर मिलते है
काली काली डामर की सड़क पर
लहू के छींटे मिलते है
बोलती बंदूके
रोती आंसू गैस
थक चुकी उम्र में
पत्थर उठाते है हाथ
बचपन और खेल को
भूल कर
पत्थर उठाते हाथ
चूल्हा चोका
छोड़ा उसने
बुर्के मे
पत्थर उठाते हाथ
लक्ष्य मेरा क्या है
मैं नहीं जानता
फिर भी
पत्थर उठाते हाथ
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