गर्मी की वो रात
गर्मी से भरी रात में
ठंडी हवा कहाँ खो गयी ।
मै जाग रहा था
नींद कहाँ से लेकर आऊं।
पत्ता भी हिल नहीं पाया
रात भर स्थिर थे हरे हरे पेड़ ।
झुलस रहा था सारा तन
ठंडक कहाँ से लेकर आऊं ।
तुम्हारे हाथों की ठंडक लेकर
पंखी की हल्की हल्की सी हवा
दे रही थी दवा।
रात भर जागी तुम
मै सो रहा था।
मेरी आँखें बंद थी
फिर भी तुम्हे देख रहा था।
रात भर जागी तुम्हारी आँखें
फिर भी ताज़गी से
निहार रही थी आँखें।
सुबह कह रही थी मुझसे
गर्मी की वो रात हार गई
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