Friday, July 23, 2010

फलोदी के भामाशाह

इतिहास के पन्नो को पलटे तो पश्चिम काशी के भामाशाहो के अथाह दान व परोपकारी कार्यो का स्वर्णिम चित्रण मिल जायेगा। राय बहादूर सान्गिदास थानवी से लेकर वर्त्तमान मे हेमजी पुरोहित इस परम्परा का नेतृत्व कर रहे है। फलोदी के भामाशाहो की विशेषता रही है कि उनका दान देने का तरीका आवश्यकता व उपयोगिता पर आधारित रहा है। उदहारण के तौर पर संगिदास जी का कुआ, परमसुख जी का कुआ शहर की प्यास बुझाता है, एस टी सी स्कूल से लेकर करोड़ों की लागत से नवनिर्मित कॉलेज का वास्तु परिकल्पना बनाने वाले का पवित्र साहस को प्रकट करता है। शाहजहां ने एक निज प्रेम के लिए ताजमहल बनाकर अपना प्रेम अमर किया था लेकिन फलोदी के भामाशाह ने शिक्षा और शिक्षार्थियों को भूलने वाला तोहफा देकर फलोदी के इतिहास मे एक और प्रष्ट जोड़ दिया हैऔर जब भी एक होनहार विधार्थी इस कॉलेज से निकलेगा तो हर बार इस कॉलेज मे लगे पत्थर को जरूर निहारेगा और कहेगा मै और इस कॉलेज मे लगे पत्थर शौभाग्यशाली है ।

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