बात आज से ६-७ वर्ष पहले की जब मे मै एक समाचार पत्र मे काम करता था। रात के १०-१०.३० बजे थे, स्कूटर से मै घर लौट रहा था । रस्ते मे मे बाज़ार में कुच्छ सामान खरीदने के लिए रुका था कि एक छोटा सा बच्चा गोद मे ६ माह के बच्चे को लिए मेरे पास आया और मागने लगा । मैंने पूछा कि उसे पैसे चाहिए या खाने की चीज । बच्चा कहने लगा की उसे छोटे भाई के लिए ढूध चाहिए , छोटा बच्चा भूख से तड़प रहा था ।
मैंने पास डेयरी से दूध लिया और थैली बच्चे को दे दी। बच्चे के पास कोई बर्तन नहीं था और दूध देख कर छोटा बच्चा ज्यादा रोने लगा था, बच्चा आस पास की दुकानों पर डिस्पोसल ग्लास मांगने गया लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की । मै ये नजारा देख रहा था आखिरकार बच्चे ने दूध की थैली फाड़कर अपने भाई को पिलाना शुरू किया आधा दूध वो पी रहा था आधा नीचे गिर रहा था।
मै चुपचाप स्कूटर लेकर निकल गया और सोचने लगा कि मुझमे उन दुकान वालो मे कोई फर्क नहीं है,
फर्क इतना था कि दुकानों वालो आत्मा पहले से ही मरी हुई थी मेरी बाद मे मरी थी। हम सिर्फ इंसानी बुत बन कर रह गए थे ।
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